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कभी अलविदा न कहना के साथ हुआ समापन


सतना। एकेएस यूूनिवर्सिटी, सतना के सभागार में आरजीआई बायोटेक फाइनल ईयर  के स्टूडेन्टस को जूनियर्स ने यादगार फेयरवेल पार्टी दी। फेयरवेल पार्टी में कई ऐसे पल आए जब पलके गीली हुई तो कई मौकों पर खुशी से लबरेज लम्हे भी नुमाॅयाॅ हुए। बेबी डाल साॅग के म्यूजिंग, पर मस्ती के रंगो से जूनियर्स और सीनियर्स खूब थिरके जो जुनूं जुनूं  गीत के साथ सभागार में उपस्थित सभी ने सुरों से सुर मिलाया कुल मिलाकर फेयरवेल पार्टी का रोमांच चरम पर रहा।


डांस के साथ हुई पार्टी की शुरुआत


लम्हे-लम्हे फेयरवेल पार्टी में गीत, संगीत और मस्ती का शानदार कम्बीनेशन बना रहा। फेयरवेल पार्टी के दौरान एक-दूसरे से दूर होने का गम भी नृत्य, गीत और संगीत के लफजों के माध्यम से उभरा। बायोटेक फाइनल ईयर  के स्टूडेन्टस को जूनियर्स द्वारा फेयरवेल पार्टी दी गई। जूनियर्स को सीनीयर्स द्वारा बेहतरीन अल्फाजी टिप्स भी दिए गए। जिसे जूनियर्स ने तहे दिल से स्वीकार किया।


एकल ड्यूएट और ग्रुप डांस रहे खास

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एकेएस में हुए संगोष्ठी

सतना। हेनरी डयूनेन्ट ने 1963 में जेनेवा में एक कमेटी बनाई जिसका नाम रखा रेडक्राॅस की अंतरराष्ट्रीय समिति रखा गया। इसी दिवस की याद में ‘‘रेडक्राॅस ड’’े सेलीब्रेट किया जाता है।


संगोष्ठी में इस बात पर चर्चा की गई कि बिना भेदभाव के पीड़ित मानवता की सेवा करने का विचार देने वाले तथा रेडक्राॅस अभियान को जन्म देने वाले मानवता के प्रेमी हेनरी डयूनेन्ट का जन्म 8 मई, 1828 में हुआ था। वह एक स्विस बिजनेसमैन और महान समाज सेवक थे। उनके जन्म दिन 8 मई को ही विश्व रेडक्राॅस दिवस के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है। इसे हम अंतरराष्ट्री स्वयंसेवक दिवस के रूप में मनाते है।


प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रेडक्राॅस के लिए मानवता की रक्षा करना उनकी सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई। उस समय हर जगह मानवता का संहार किया जा रहा था। ऐसे में रेडक्राॅस द्वारा चिकित्सा सुविधाएं देना एक बड़ी समस्या थी। युद्ध के समय घायल सैनिकों को अपनी सेवा देना इनका प्राथमिक कार्य होता था।
भारत में वर्ष 1920 में पार्लियामेंट्री एक्ट के तहत भारतीय रेडक्राॅस सोसायटी का गठन हुआ, तब से रेडक्राॅस के स्वयं सेवक विभिन्न प्रकार की आपदाओं में निरंतर निःस्वार्थ भावना से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। भारत में प्राकृतिक आपदा अपने चरम पर रहती है उसको देखते हुए रेडक्राॅस सोसाइटी मानवता की सेवा के लिए भारत के कोने-कोने में अभियान भी चलाती है।


आज विश्व के अधिकांश ब्लड बैंकों की देख-रेख रेडक्राॅस एवं उसकी सहयोगी संस्थाओं के द्वारा किया जाता है। जगह-जगह रक्तदान शिविर आयोजित करके लोगों को रेडक्राॅस के बारे में जागरूक किया जा रहा है। रेडक्राॅस द्वारा चलाए गए रक्तदान जागरूकता अभियान के कारण ही आज थैलीसिमिया, कैंसर, एनीमिया जैसी अनेक जानलेवा बीमारियों से हजारों लोगों की जान बच रही हैं। संगोष्ठी में चर्चा के दौरान विभिन्न विभागों के फैकल्टीज व विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया।

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एकेएस यूनिवर्सिटी, सतना के मैनेजमेंट विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. कौशिक मुखर्जी एवं एसिस्टेंट प्रो. प्रमोद द्विेदी के साथ एमबीए द्वितीय सेमेस्टर के विद्वार्थियों ने यूनिवर्सल केबल्स का भ्रमण किया विद्याथर््िायों ने प्रोडक्सन एवं पैकेजिंग के साथ ही फिनिस्ड प्रोडक्ट के बारे में भी जानकारी प्राप्त की ।यूनिवर्सल केबल्स के अधिकारियों से यूनिट की कार्यप्रणाली की जानकारी प्राप्त की।

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एकेएस यूनिवर्सिटी, सतना के सभागार में एक कार्यक्रम रखकर ‘‘वल्र्ड थैलेसीमिया डे‘‘ मनाया गया गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘‘वल्र्ड थैलेसीमिया डे‘‘ 8 मई को नियत किया है। वर्तमान के बोन मैरो ट्रान्सप्लान्टेशन की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए बताया गया कि थैलेसीमिया नामक बीमारी से बचाव संभव है। विश्व में पाए जाने वाले मरीजों पर चर्चा करते हुए फार्मेसी विभागाध्यक्ष नेे बताया कि यह अनुवांशिक ब्लड डिस आर्डर की बीमारी हैै। ब्लड सैल्स में हीमोग्लोबिन की कम मात्रा पाई जाती है। जिससे थैलेसीमिया का प्रभाव बढ़ जाता है। थैलेेेसीमिया के मरीजों को दो तरह की समस्याऐं आती है। पहली रेड ब्लड सेल्स कम मात्रा में प्रोड्यूस होता है दूसरे अधिकतर सेल्स डैमेज हो जाती है। हीमोग्लोबिन में दो तरह की प्रोटीन पाई जाती है। अल्फा और बीटा इन दोनों प्रोटीनों के प्रकार पर भी चर्चा की गई। इस मौके पर एकेएस यूनिवर्सिटी, सतना के विशाल सभागार में विभिन्न संकायों के विद्यार्थियों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

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हर चैथा व्यक्ति है अस्थमा से पीडित

गौरतलब है कि मई माह में विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है। यह मई के पहले मंगलवार को पूरे विश्व में घोषित किया गया है। एकेएस सभागार में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए पर्यावरण विभागाध्यक्ष डाॅ. महेन्द्र तिवारी ने बताया कि स्वास्थ्य को समझकर, अस्थमा या दमा के मरीज भी मौसम का मज़ा ले सकते हैं। वातावरण में मौजूद नमी अस्थमा के मरीजों को कई प्रकार से प्रभावित करती है। बरसात आने के साथ ही अस्थमैटिक्स की मुसीबत भी बढ़ जाती है, ऐसे में उन्हें नमी वाली जगहों पर नहीं जाना चाहिए। अस्थमा के मरीज़ों के लिए आहार की कोई बाध्यता नहीं होती, लेकिन अगर किसी खास प्रकार के आहार से एलर्जी हो तो उससे परहेज करना चाहिए। अस्थमा अटैक से बचने के टिप्स भी विद्यार्थियों का दिये गये। जिसमें आँाधी और तफान के समय घर से बाहर ना निकलें, अस्थमा को नियंत्रित रखे और अपनी दवाएं हमेशा साथ रखें, अगर बच्चा अस्थमैटिक है, तो उसके दोस्तों व अध्यापक को बता दें कि अटैक की स्थिति में क्या करना है, हो सके तो अपने पास स्कार्फ रखें जिससे आप हवा के साथ आने वाले पालेन से बच सकें, घर के अंदर किसी प्रकार का धुंआ न फैलने दे। अलग-अलग लोगों में दमा के दौरे के कारण भिन्न हो सकते हैं इसलिए सबसे आवश्यक बात यह है कि आप अपनी स्थितियों को समझें। 10 वर्ष पूर्व जहां 100 में 24वां व्यक्ति अस्थमा से पीड़ित था। वही आज के परिवेश में हर चैथा व्यक्ति अस्थमा पीड़ित है। इस मौके पर विभिन्न संकायों के विद्यार्थी शामिल रहे।

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