एकेएस विश्वविद्यालय में दो दिवसीय ‘‘कम्यूनिकेशन मास्टरी वर्कशाप’’ का समापन हुआ। व्यक्ति और रिश्तों के बीच के अंतरालों को दूर करके परिजनों को एक कर देने की शिक्षा इस कार्यशाला का मूल लक्ष्य साबित हुई। प्रत्येक व्यक्ति अपने मन में सुख और रिश्तों की मधुरता को लेकर जीता है किन्तु वैचारिक अवरोधों के चलते अनेक किस्म के अवरोधों को वह महसूस करने लगता है। इनोवेटर वरूण चमाड़िया ने इसे दो रूपों में विभाजित किया। एक रूप को वायरस की दुनिया और दूसरे पहलू को जीवन्तता की दुनिया के रूप में रेखाकिंत किया। वायरस की दुनिया में उन्होंने उन बिन्दुओं को शामिल किया जो छोटे-छोटे लक्ष्यों पर आधारित होते है और उन बातों को कल्पनाओं से इतना बड़ा कर लिया जाता है कि वे हमारे तमाम अवरोधों का कारण बन जाते है। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कोई परिजन अपने विशेष स्वभाव के चलते एक भिन्न मनोदशा में हो सकता है। कभी वह कुछ अभिव्यक्त करता है कभी कुछ अभिव्यक्त नहीं करता किन्तु उसका इरादा किसी की उपेक्षा करना नहीं होता। दूसरा व्यक्ति इन बातों पर धारणा बनाकर जीने लगता है और यह छोटी सी बात रिश्तों के बीच दरार बन जाती है और पूरे जीवन को प्रभावित करती है। जबकि इसका सल्यूशन एक मिनट की अभिव्यक्ति है। दरअसल, रिश्तों में बिगाड़ इसलिए होता है क्योंकि हम बिगाड़ की दिशा में प्रयास करते है। जीवन्त्ता की दुनिया में हम उस खुशी पर विचार करते है जो हमें अपने परिजनों से मिलती है हम उन्हंे खोना नहीं चाहते लेकिन अपने मन में तमाम धारणाओं के चलते सम्बन्धों में आगे भी नहीं बढ़ पाते। एक उदाहरण देते हुए वरूण चमाड़िया ने कहा कि नीबू का अपने आप में एक गुण है वह दूध में पड़ेगा तो फाड़ देगा, और पानी में पड़ेगा तो नीबू पानी बन कर स्वास्थ्यप्रद हो जाएगा। ये तो सिर्फ एक उदाहरण है किन्तु होता ऐसा ही है। नीबू फाड़ना किसी को नहीं चाहता। लेकिन प्रभाव पड़ता है दूध प्रभावों को ले लेता है उन्होंने एक स्केल को दिखाते हुए कहा कि यह मनुष्य के जीवन के दो पाट है। एक नकारात्मकता की दुनिया एवं दूसरी सकारात्मकता की दुनिया। इन दोनों के मध्य में एक हिस्सा जीरो रेजिस्टेेंस का है। सारे संसार की तरक्की इसी जीरो रेजिस्टेेंस पर है क्योंकि क्रोध, घृणा, हिंसा आदि निश्चित अवधि की भाव दशायें है। इन अभिव्यक्तियों के दौरान यदि दूसरा पक्ष शून्य निर्वात में रहे तो निश्चित ही क्रोध आदि में उबल रहा व्यक्ति जल्द शांत हो जाता है और फिर संवाद के बिन्दु शुरु हो जाते है। कार्यशाला के अन्त में उपस्थित सदस्यों ने अपने बदले हुये मनोभावों को प्रदर्शित किया।

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एकेएस विश्वविद्यालय के काॅमर्स फैकल्टीज, डाॅ. धीरेन्द्र ओझा एवं डाॅ. सच्चिदानंद का ”इफेक्ट आॅफ डिमोन्टेनाईजेशन इन इण्डिया” विषय पर आधारित शोधपत्र साइंटिफिक प्रोग्रेस एंड रिसर्च इन्टरनेशनल जर्नल के वाॅल्यूम-31 नम्बर 2 के जनवरी 2017 के अंक में प्रकाशित हुआ है। डाॅ. ओझा ने बताया कि इस शोध पत्र में यह बताया गया है कि विमुद्रीकरण के प्रभाव से आर्थिक जगत का कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है। परन्तु उसका प्रभाव बैंकिंग सेक्टर , आॅटोमोबाईल सेक्टर तथा संरचनात्मक सेक्टर से सर्वाधिक रहेंगा । वर्तमान समय में सर्विस सेक्टर पर इसका प्रभाव न के बराबर रहेगा। हालांकि गवर्नमेन्ट के भ्रष्टाचार पर लगाम और अंतकवाद से जुड़े मुद्दे पे इसका प्रभाव आर्थिक रूप से दीर्घकालीन रहेगा तथा बैंकिग सेक्टर को जमाओं पर अधिक इन्टरेस्ट पेमेन्ट करने के कारण नेट प्राॅफिट कम होने का जोखिम भी वहन करना पड़ सकता है।
एकेएस विश्वविद्यालय के मैंनेजमेंट संकाय के एम.बी.ए. तृतीय सेमेस्टर के छात्रों ने यूनिवर्सल केबल लिमिटेड की इन्डस्ट्रियल विजिट की। इस दौरान छात्रों ने (जी.एम. एच.आर.) विनीत सक्सेना एवं विभागाध्यक्ष डाॅ. कौशिक मुखर्जी के निर्देशन में गुणवत्ता नीति, केबल प्रोडक्शन ले आउट, एच.आर. पाॅलिसी, कम्परेटिव इन्डस्ट्रियल रिलेशन एवं टेक्निकल एक्टिविटी एवं प्रोडक्शन एक्टिविटी के बारे में टेक्निकल हेड एवं प्रोडक्शन हेड से तकनीकी जानकारियां हासिल की। इस दौरान एकेएस विश्वविद्यालय की तरफ से (वाइस प्रेसिडेन्ट एच.आर.) सुधीर जैन को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया उन्होंने आश्वासन दिया कि आगे भी इस तरह के कार्यक्रमों में छात्रों का सहयोग करेगें। विजिट के दौरान विद्यार्थियों का मार्गदर्शन फैकल्टी श्वेता सिंह ने किया।
एकेएस विश्वविद्यालय के बायोटेक विभाग में कार्यरत् अस्सिटेंट प्रोफेसर, श्रेयांस परसाई ने यूनिवर्सिटी आॅफ एप्लाईड साइसंेस एवं आटर््स, नार्थ वेस्टर्न, स्विटजरलैण्ड द्वारा काठमांडू स्कूल आॅफ मैनेजमेंट में 23 से 28 जनवरी तक ‘आर्गेनिक वेस्ट टू एनर्जी थ्रू एनोरेबिक डाइजेशन” विषय पर आयोजित सात दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में वि. वि. का प्रतिनिधित्व किया ।
इन प्रतिष्ठत संस्थानो से विशेषज्ञ हुए शामिल
गौरतलब है कि कार्यशाला में स्विटजरलैण्ड यूनिवर्सिटी, काठमांडू यूनिवर्सिटी एवं नीरी (नेशनल इनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट) नागपुर, से आए विषय विशेषज्ञों ने विश्व स्तर पर साॅलिड वेस्ट, म्यूनिसिपल वेस्ट एवं हाउस होल्ड वेस्ट को कैसे एनर्जी के रूप में उपयोग करें एवं इस प्रक्रिया हेतु जरूरी वस्तुएं, साइज, लागत एवं एरिया के विषय पर अपने विचार व अपनी राय दी। कार्यशाला में भारतवर्ष से 7 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया वहीं नेपाल के छात्र छात्राओं के साथ विषय विशेषज्ञ भी मौजूद रहे।
विषय पर रखी अपनी राॅय
श्रेयांश पारसाई कार्यशाला में अपनी राॅय रखते हुए कहा किएन एनोरोबिक डाइजेशन के द्वारा गैस का उत्पादन किया जाता है जो कि घरेलू उपयोगों के लिये आवश्यक है। अब यह सारी प्रणाली एकेएस वि.वि. के छात्रों को समझाई जायेगी जिससे विंध्य क्षेत्र में साॅलिड वेस्ट को कैसे उपयोग करें जिससे यह वेस्ट हमारे लिये उपयोगी साबित हो वेस्ट को डायजस्टर में उपयोग करके गैसों का उत्पादन किया जायेगा। गौरतलब है कि उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में हाउसहोल्ड वेस्ट को व्यवस्थित करने हेतु इस प्रणाली का उपयोग सुचारू रूप से बायोगैस उत्पादन के लिये किया जा सकता है जो एलपीजी से 70 प्रतिशत कम खर्चीली होती है।
ए.के.एस. विश्वविद्यालय के फैकल्टी आॅफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नाॅलाजी द्वारा बेसिक आॅफ रिमोट सेन्सिंग जीआईएस (जियोग्राफिकल इनफार्मेशन सिस्टम) एंड जीएनएस (ग्लोबल नैविगेशन सेटेलाइट सिस्टम) विषय पर आॅनलाइन ट्रेनिंग प्रोग्राम आईआईआरएस (इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ रिमोट सेन्सिंग )देहरादून के तत्वावधान में प्रदान किया गया। इस दोरान 77 प्रतिभागी विद्यार्थियों के लिए प्रमाण पत्र वितरण समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में कुलपति प्रो. पी. के. बनिक ,चेयरमैन अनंत कुमार सोनी,प्रतिकुलपति डाॅ. हर्षवर्धन,डाॅ. आर. एस. त्रिपाठी, प्रो. आर. एन. त्रिपाठी ,इंजी आर. के. श्रीवास्तव , डाॅ. आर. एस. पाठक, की उपस्थित उल्लेखनीय रही।आॅनलाइन ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान आईआईआरएस के डायरेक्टर डाॅ ए सन्थिल कुमार, डाॅ. एस.के. श्रीवास्तव, डाॅ. सरनाम सिंह ने बी.टेक.एग्रीकल्चर, बीएससी एग्रीकल्चर, एमएससी एग्रीकल्चर, बी.टेक. सिविल, बी.टेक. माइनिंग के 200 विद्यार्थियों को आॅनलाइन ट्रेनिंग दी। इस टेªनिंग प्रोग्राम में बेसिक प्रिंिसपल आॅफ रिमोट सेन्सिंग, अर्थ आॅब्जर्वेशन सेन्सर्स एण्ड प्लेटफार्म, स्पेक्टरल सिग्नेचर आॅफ डिफरेन्ट लैण्ड कवर फीचर एण्ड विजुअल इमेज इंटरपें्रटेशन, माइक्रो रिमोट सेन्सिंग ,पृथ्वी की भौगोलिक संरचना एवं प्राकृतिक स्थिति ,रिमोट सेंसिंग क्या है, ये कैसे काम करती है एवं इसरो द्वारा लांच किये हुए सेटेलाइट्स तथा उनसे मिलने वाले छायाचित्रों की जानकारी के माध्यम से उनको पढ़कर कैसे पृथ्वी की भौगोलिक संरचना एवं प्राकृतिक स्थिति का जायजा लिया जा सकता हैैं।
मीडिया विभाग
एकेएस विश्वविद्यालय, सतना