शैक्षणिक डेयरी प्रक्षेत्र. पशुविज्ञान एवं मत्स्यिकी विभाग एण्केण्एस विश्वविद्यालय में
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शैक्षणिक डेयरी प्रक्षेत्र. पशुविज्ञान एवं मत्स्यिकी विभाग एण्केण्एस विश्वविद्यालय में
सतना.एण्केण्एसण् विश्वविद्यालयएसतना के अंतर्गत शैक्षणिक डेयरी प्रक्षेत्र में उन्नत नस्ल की गायें साहीवाल एवं गिर रखी गई हैं जिसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषदए नई दिल्ली द्वारा अनुशंशित कृषि संकाय के स्नातक एवं स्नाकोत्तर छात्रों को शैक्षणिक एवं अनुसंधान सुविधाएं प्रदान करना एवं इच्छुक कृषकों तथा पशुपालकों को पशुपालन की वैज्ञानिक तकनीकों से अवगत कराना है।एण्केण्एसण् विश्वविद्यालय में डेयरी प्रक्षेत्र के साथ.साथ कुकुट पालनए मत्स्य पालनए अजोला उत्पादनए केंचुआ खाद तथा फसल उत्पादन एकीकृत फसल पद्धति से संचालित है जिसमें सभी उपक्रम एक.दूसरे को लाभान्वित करते हुए उत्पादन लागत में कमी एवं सकल आय बढ़ाने में योगदान करते हैं। साहीवाल दुधारू गायों में से सर्वाधिक दूध देने वाली नस्ल है। इस गाय की औसत दुग्ध उत्पादन क्षमता 15 से 20 लीटर प्रतिदिन तथा साल भर में एक ब्यात काल अवधि में लगभग 2000 से 3000 लीटर तक है। साहीवाल नस्ल से ।2 नामक विशेष प्रोटीन युक्त दूध प्राप्त होता है जो कि मानव शरीर के मानसिक एवं शारीरिक विकास हेतु अत्यंत लाभकारी है। इसके दूध में फैट और दूसरे पोषक तत्वों की मात्रा अधिक पायी जाती है।गिर नस्ल की गाय दूसरी सबसे ज्यादा दूध देने वाली गाय होती है। इस गाय का मूल स्थान काठियावाड़ ;गुजरातद्ध का गिर जंगल हैए जिसकी वजह से इनका नाम गिर गाय पड़ गया। अच्छी देखभाल पर इस गाय के दूध देने की क्षमता बढ़कर 10 से 20 लीटर प्रतिदिन तक हो सकती है। इजरायल और ब्राजील जैसे देशों में भी इस गाय को पाला जाता है।नस्ल की गाय.दूध व्यवसाय भारत में बेहद तेजी से फल.फूल रहा हैए ये ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आमदनी का एक बढि़या स्त्रोत है।एण्केण्एसण् विश्वविद्यालय में वर्तमान में साहीवाल नस्ल की 18 तथा गिर नस्ल की 4 गायों से दूध प्राप्त किया जा रहा है।जबकि साहीवाल एवं गिर नस्ल की एक वर्ष से ऊपर की बछियों की संख्या क्रमशारू 19 एवं 3 है। डेयरी से प्राप्त दूध का उपयोग विश्वविद्यालय के कर्मचारियों एवं छात्रों द्वारा किया जाता हैए अतिरिक्त बचे हुए दुध से विद्यार्थियों द्वारा प्रायोगिक कक्षाओं में उपयोग कर उत्तम गुणवत्ता युक्त दुग्ध पदार्थ जैसे. खोवाए पनीरए घी एवं छाछ का भी निर्माण किया जाता है। जिले के किसानों एवं पशुपालक तथा विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के शिक्षण एवं प्रशिक्षण हेतु यहां की डेयरी प्रमुख भूमिका निभाती हैं। जैविक खेती को दृढ़ता प्रदान करने में डेयरी पशुओं से प्राप्त गोबर का बेहतरीन उपयोग केंचुआ खाद तैयार कर वृहद रूप से किया जा रहा है। इस केंचुआ खाद का उपयोग कृषि अनुसंधान एवं शैक्षणिक प्रक्षेत्रोंए बागवानी फसलों तथा चारा उत्पादन प्रक्षेत्र में बेहतरीन ढंग से किया जा रहा है। डेयरी पशुओं को उच्च गुणवत्ता युक्त संतुलित पशुआहारए खनिज तत्व तथा वर्ष भर हरा चारा उनकी आवश्यकतानुसार प्रदान किया जाता है। गायों से उत्तम किस्म का स्वच्छ दूध पैदा करने के लिए पशु शाला की साफ.सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यहां की गौशाला रूफ वेन्टीलेटरए पंखेए कूलरए मिल्किंग मशीन तथा काऊ मैट जैसी सुविधाओं से युक्त है। परिणामस्वारूप पशुओं का स्वास्थ्य सदैव अच्छा बना रहता है।