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सतना। तीव्र गति से उभरते भारतीय बायोटेक उद्योग को देखते हुए एकेएस यूनिवर्सिटी सतना के कोर्स बायोटेक्नालाॅजी ने विद्यार्थियों को ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। वर्तमान समय पर जैव प्रौद्योगिकी एक ऐसा नया और उदयीमान अध्ययन क्षेत्र है जिसमें भविष्य में विकास की असीम संभावनाएं हैं। बायोटेक्नालाॅजी ने काफी कम समय में दुनिया भर के मानव और आर्थिक जगत में वैज्ञानिकों को अधिकाधिक शोध व अन्वेषणों के लिये प्रोत्साहित किया है आज भारत को एशिया पेशेफिक में बायोटेक्नालाॅजी के क्षेत्र में पांच उभरती शक्तियों में गिना जा रहा है वर्तमान में बायोटेक इण्डस्ट्रीज चार बिलियन आंकड़े को पार कर गई है। आने वाले वर्ष में इसमें 30 प्रतिशत मिश्रित विकास दर की उम्मीद है।
एकेएस में बायोटेक्नालाॅजी कोर्स
एकेएस यूनिवर्सिटी सतना में बायोटेक्नालाॅजी के चार कोर्सेस हैं जिसमें बी.टेक (बायोटेक) चार वर्षीय कोर्स के लिये हायर सेकण्डरी यानी 12वीं (बायो, बायोटेक, मैथ्स) में एवं बी.एस.सी. आॅनर्स तीन वर्षीय कोर्स के लिये 12वीं (बायो, मैथ्स), एम.एस.सी. बायोटेक एवं एम.एस.सी. माइक्रो बायोलाॅजी दो वर्षीय कोर्स के लिये (ग्रेजुएशन इन लाइफ साइंस) पास विद्यार्थी प्रवेश की पात्रता रखते हैं।
वर्तमान में बायोटेक्नालाॅजी की स्थिति
बायोटेक्नालाॅजी कोर्स में जाॅब की संभावनाओं पर बात करते हुए बायोटेक्नालाॅजी के हेड डाॅ. कमलेश चैरे ने बताया कि भारत की बात करें तो यहां बायोटेक्नालाॅजी में नौकरियां उपलब्ध कराने वाले दो क्षेत्र मेडिकल बायोटेक्नालाॅजी, एग्रीकल्चर बायोटेक्नालाॅजी तेजी से बढ़ रहे हैं। आने वाले समय मे भारतीय बायोटेक उद्योग घरेलू और वैश्विक दोनों स्तर पर अपनी पहचान दर्ज कराकर युवाओं के लिये अनगिनत राह खोलेगा। प्रोफेशनल्स के लिये फूड, केमिकल, जनेटिक्स इंजीनियरिंग, हेल्थ केयर, इण्डस्ट्रीयल रिसर्च एण्ड डेवलपमेन्ट सहित अनेकों क्षेत्र में काम उपलब्ध है। इस क्षेत्र में युवा क्वालिटी कन्ट्रोल आॅफीसर, प्रोडक्शन इंचार्ज (खाद्य, रसायन तथा दवा उद्योग) अनुसंधान वैज्ञानिक के रूप में अपनी संभावनाएं तलाश सकते हैं। इसके अलावा विद्यार्थी कृषि उद्योग, जैव प्रसंस्करण उद्योग और सरकारी, गैर सरकारी अनुसंधान केन्द्रों में काम कर सकते हैं।
बायोटेक्नालाॅजी में जाॅब की असीम संभावनाएं
भारत में बायोटेक्नालाॅजी का विस्तार व्यापक है तथा आज भी विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान जारी है उनमें कृषि, पशुपालन विज्ञान, स्वास्थ्य सेवा, उद्योग, ऊर्जा इत्यादि शामिल हैं। आज हैदराबाद जीनोम वैली कहलाने लगा है। यहां 600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में करीब 100 बायोटेक कम्पनियां आकार ले रही हैं। मेडिकल बायोटेक्नालाॅजी एवं एग्रीकल्चर बायोटेक्नालाॅजी सालाना 8000 करोड़ रुपये के राजस्व उत्पादित करने वाले इस क्षेत्र में 70 फीसदी राजस्व मेडिकल बायोटेक्नालाॅजी के जरिये आता है। बायोटेक के बढ़ते क्षेत्र में चलते सभी वर्षों में कम्पनियों की संख्या बढ़ रही है जहां कुशल शोधकर्ता एवं बायोलाॅजिस्ट की मांग है। बायोटेक्नालाॅजी के विद्यार्थी शैक्षणिक विभाग मे प्राध्यापक के तौर पर भी आवेदन कर सकते हैं जहां पर उनका वेतन 20000 से 30000 रुपये के बीच में शुरुआती तौर पर होता है। डिपार्टमेंट आॅफ बायोटेक्नालाॅजी भारत में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य करने वाली नोडल एजेंसी है जो कि भारत में शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देने, शैक्षणिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने, किसानों को अधिकाधिक तकनीकी रूप में सुदृढ़ बनाने, जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में स्थापित होने वाली कम्पनियों को प्रोत्साहित करने का कार्य करती है। कोर्स के बारे में अधिक जानकारी एकेएस यूनिवर्सिटी सतना एवं राजीव गांधी कम्प्यूटर काॅलेज में कार्यालयीन समय पर ली जा सकती है।


एकेएस यूनिवर्सिटी में ‘‘विश्व शरणार्थी दिवस’’ पर होगा जागरूकता कार्यक्रम

सतना। ‘‘नेशनल एम.पी. टेक्निकल एज्यूकेशन एवं समिट-2014’’ एक्सीलेंट प्राइवेट वि.वि.का दर्जा प्राप्त एकेएस यूनिवर्सिटी सतना अपने विद्यार्थियों के सामाजिक एवं नैतिक शिक्षा के साथ ही अध्यात्मिक एवं सर्वांगीण विकास हेतु कटिबद्ध रहते हुए समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करती है। एकेएसयू के इन्वायरनमेंट सांइस विभाग द्वारा ‘‘विश्व शरणार्थी दिवस’’ पर ‘‘एक बेहतर दुनिया की ओर प्रवासी और शरणार्थी - 2014’’ थीम पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। इस बात की जानकारी देते हुए इन्वायरनमेंट सांइस के विभागाध्यक्ष डाॅ. महेन्द्र कुमार तिवारी ने बताया कि कार्यक्रम में समाज में शरणार्थियों की स्थिति, शरणार्थियों के नैतिक समर्थन, शरणार्थियों की वास्तविक कहानियां जैसे मुद्दो पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। जागरूकता कार्यक्रम में सभी संकायों के फैकल्टीज एवं विद्यार्थी भाग लेगे।

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सतना। एकेएस विश्वविद्यालय सतना तथा नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग एण्ड रिसर्च भोपाल के संयुक्त तत्वाधान में आटोमोबाइल विषय पर डिस्टेंस लर्निंग कोर्स का शुभारंभ किया गया जिसमें आर.के. गोरडा, एफटीआई बैंगलोर ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में म.प्र. के चुनिंदा चार संस्थानों को चयनित किया गया था जिसमें एकेएस यूनिवर्सिटी सतना शामिल है। इस कार्यक्रम में कटनी, रीवा, सिंगरौली, अनूपपुर, शहडोल, सागर, छतरपुर, पन्ना, विजयराघवगढ़, सतना, पुरई, ओरछा, मैहर, उचेहरा, न्यू रामनगर, मऊगंज, मनगवां, बेनीवारी, जैतहरी, कोतमा, बीना, दमोह, नोहटा, पटेहरा, टीकमगढ़, उमरिया, बहोरीबंद इत्यादि क्षेत्रों के विभिन्न आई.टी.आई. संस्थानों के शिक्षकों को प्रशिक्षित होने का अवसर मिला। यह कार्यक्रम 18 जून से 20 जून तक सुनिश्चित है। कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर एकेएस विश्वविद्यालय के चेयरमैन अनंत कुमार सोनी ने प्रतिभागियों को शुभकामनाएं दीं। कार्यक्रम के स्थानीय संयोजक कुमार आशीष ने विश्वविद्यालय प्रबंधन, तकनीकी विभाग तथा नाइटर भोपाल को इस कार्यक्रम में सहयोग के लिये धन्यवाद ज्ञापित किया।वि.वि. प्रबंधन ने बताया कि यह पूरा कार्यक्रम मिनिस्ट्री आॅफ लेबर एण्ड एप्लायमेंट नई दिल्ली तथा डायरेक्टर आॅफ स्किल डेवलपमेंट म.प्र. के संयुक्त प्रायोजन से प्रस्तुत किया जा रहा है।

एकेएस यूनिवर्सिटी में ‘‘विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा दिवस‘‘ पर परिचर्चा का आयोजन

सतना। नेशनल एम.पी. एज्युकेशनल समिट 2014 में एक्सलेंट प्राइवेट वि.वि. का दर्जा प्राप्त एकेएस यूनिवर्सिटी के एनवायर्नमेंट साइंस विभाग द्वारा ‘‘विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा दिवस’’ के अवसर पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें एनवायर्नमेंट साइंस के विभागाध्यक्ष डाॅ. महेन्द्र कुमार तिवारी ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सन् 1994 में 17 जून को विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा दिवस, मरुस्थलीकरण से निपटने और सूखे के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये घोषित किया गया। तब से लेकर प्रतिवर्ष विश्व के सभी देश जो इस समस्या से ग्रसित हैं इसके समाधान के लिये यह दिवस मनाते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन पर चर्चा

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सतना। भारत में फूड प्रोसेसिंग एवं टेक्नालाॅजी की विकासशील अवस्था एवं फूड टेक्नालाॅजिस्ट की विशेष मांग को देखते हुए एकेएस यूनिवर्सिटी सतना के कोर्स फूड प्रोसेसिंग एवं टेक्नालाॅजी की तरफ विद्यार्थियों का रुझान तीव्र गति से बढ़ा है। फूड टेक्नालाॅजी एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें फूड प्रोडक्ट के उत्पादन, भण्डारण, परीक्षण, पैकेजिंग तथा वितरण संबंधी कार्य किये जाते हैं। वर्तमान समय में भारत में लगभग 50 करोड़ उच्च एवं मध्यम वर्गीय उपभोक्ता हैं जिसके चलते फूड इण्डस्ट्रीज में प्रशिक्षित एवं पेशेवर व्यक्तियों की अधिक आवश्यकता है।

एकेएसयू में है फूड टेक्नालाॅजी

एकेएस यूनिवर्सिटी सतना में फूड प्रोसेसिंग एवं टेक्नालाॅजी कोर्स चार वर्षीय डिग्री कोर्स है जिसमें प्रवेश के लिये विद्यार्थी को हायर सकण्डरी यानि 12वीं (फिजिक्स, केमेस्ट्री, मैथ्स अथवा बायोलाॅजी) पास होना आवश्यक है, तभी छात्र बी.टेक में प्रवेश पा सकेगा। मास्टर एवं डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये शैक्षणिक योग्यता स्नातक निर्धारित है यदि किसी विद्यार्थी ने होम साइंस, न्यूट्रीशियन, डायटीशियन एवं होटल मैनेजमेंट में ग्रेजुएशन किया है तो फूड टेक्नालाॅजी में मास्टर डिग्री प्राप्त कर सकता है।

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सतना। एकेएस यूनिवर्सिटी, सतना के द्वारा शहडोल में परख परीक्षा का आयोजन किया गया। जिसमें 250 छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। गौरतलब है कि निःशुल्क काउंसलिंग एवं विद्यार्थियों के सही कैरियर मार्गदर्शन के लिये एकेएस यूनिवर्सिटी सतना अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप संपूर्ण मध्यप्रदेश में परख परीक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों की रूचि के अनुसार कैरियर मार्गदर्शन प्रदान कर रहा हैं। जनवरी से प्रारंभ हुये परख 2014 के लिये अब तक एकेएस प्रोफेसर्स द्वारा विद्यार्थियों को उनकी प्रतिभा के अनुसार मार्गदर्शन दिया गया, जिसमें विद्यार्थियों ने भी बढचढकर अपनी प्रतिभागिता दर्ज कराई। परख परीक्षा का आयोजन एकेएस यूनिवर्सिटी सतना शहडोल में कैम्पस पांडव नगर में रविवार 15जून2014 को सुबह 10.00 बजे से दोपहर 2.00बजे तक आयोजित किया गया ।
प्रतियोगिता में चयनित छात्र-छात्राओं को अंतिम चरण में प्रथम एवं द्वितीय पुरूस्कारों के लिये चयनित किया जायेगा। चयनित विद्यार्थियों को एकेएस यूनिवर्सिटी सतना के सभागार में इनामी राशि से सम्मानित किया जायेगा।

एकेएस यूनिवर्सिटी के एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में प्रवेश प्रारंभ

सतना। इंजीनियरिंग की कई शाखाओं में एग्री इंजीनियरिंग अहम स्थान रखती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत की 52 प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है। यह विश्व की कुल उपलब्ध कृषि योग्य भूमि का 11 प्रतिशत है। इसलिये कृषि वैज्ञानिकों के अनुसंधान एवं तकनीकी के संयोजन से कृषि ने उद्योग का दर्जा प्राप्त कर लिया है।
एकेएस यूनिवर्सिटी के एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग के बी.एस.सी. एग्रीकल्चर आॅनर्स चार वर्षीय कोर्स में 12वीं (बायो, मैथ्स, एग्रीकल्चर) के बाद प्रवेश ले सकते हैं। इसी तरह बी.टेक एग्रीकल्चर इंजीनियनियरिंग के लिये 12वीं (बायो, मैथ्स, एग्रीकल्चर) के साथ उत्तीर्ण होने पर चार वर्षीय कोर्स में प्रवेश ले सकते हैं। एम.एस.सी. एग्रीकल्चर दो वर्षीय कोर्स में प्रवेश के लिये बी.एस.सी. एग्रीकल्चर में ग्रेजुएट होना आवश्यक है।
एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में नौकरी की संभावनाएं
कृषि क्षेत्र में रोजगार के व्यापक अवसर मौजूद हैं जो इस प्रकार हैं - पादप रोग विज्ञानी, ब्रीडर, कृषि मौसमी विज्ञानी, आर्थिक वनस्पति विज्ञानी, अनुसंधान इंजीनियर, शस्य विज्ञानी, वैज्ञानिक, एसोसिएट प्रोफेसर इसके अलावा सहायक वैज्ञानिक, सहायक प्रोफेसर, जिला विस्तार विशेषज्ञ, सहायक पादप रोग विज्ञानी, सहायक जीवाणु वैज्ञानिक, सहायक वनस्पति विज्ञानी, सहायक मृदा रसानयज्ञ, सहायक मृदा विज्ञानी, सहायक आर्थिक वनस्पति विज्ञानी, सहायक फल ब्रीडर, सहायक बीज अनुसंधान अधिकारी, कनिष्ट कीट विज्ञानी, सहायक ब्रीडर, कनष्ठि ब्रीडर शस्य विज्ञानी, बीज उत्पादन सहायक, सहायक अनुसंधान वैज्ञानिक एवं पादप शरीर विज्ञानी आदि के साथ-साथ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राज्य कृषि विभाग, बैंकिंग क्षेत्र, बीज कंपनियां, आई.सी.आर.आई.एस.ए.टी., कृषि उद्योग, कृषि इंजीनियरिंग, कृषि प्रबंध, सेवा क्षेत्र, निगम इत्यादि में कॅरियर के अवसर मौजूद हैं। स्टूडेंट्स आॅन लाइन एकेएस यूनिवर्सिटी सतना की वेबसाईट या आॅफ लाइन एकेएस कैम्पस, बस स्टैण्ड व माखन लाल बिल्डिंग से फार्म प्राप्त कर सकते हैं।

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एकेएस यूनिवर्सिटी, सतना ने बदलते दौर की जरूरत एवं विद्यार्थियों की रुचि एवं रूझान को ध्यान में रखते हुए जो नए कोर्सेस लांच किये हैं।उनमें एम.टेक. एप्लायड जिओलाॅजी कोर्स महत्वपूर्ण है।

एम.टेक. एप्लायड जिओलाॅजी कोर्स की अवधि 3 वर्ष है जबकि इंटीग्रेटेड कोर्स 5 वर्ष का है। सांइस में 12वीं पास विद्यार्थी एम.टेक. एप्लायड जिओलाॅजी मंे प्रवेश प्राप्त कर सकते है। गौरतलब है कि भविष्य में माइनिंग एवं खनिज उद्योग विकास के नए प्रतिमान स्थापित करेगे। भारत में खनिज एवं कोयला संसाधन प्रर्याप्त है। लेकिन वैश्विक प्रतिस्पर्धा न होने की वज़ह से भविष्य में एप्लायड जिओलाॅजी की उपयोगिता बढ़नी तय है। ये इंजीनियर्स खनिज कोयला और तैल उद्योग में कार्य कर सकेंगे। भारतीय सीमाओ ंके आलावा अफ्रीका और खाड़ी देशों में एम.टेक. किए इंजीनियर्स की विशेष मांग है। कोर्स में लेटरल इन्ट्री बी.एस.सी. भू-विज्ञान भी उपलब्ध है। इस कोर्स की मुख्य विशेषता होगी देश-विदेश के जाने-माने विषय विशेषज्ञों द्वारा अध्यापन एवं स्पेस्फिक प्रैक्टिकल्स।

इन कोर्सेस बारे में विस्तार से जानकारी एकेएस यूनिवर्सिटी, सतना की वेबसाइट से ली जा सकती है या कार्यालयीन समय पर एकेएस विश्वविद्याल, शेरंगज एवं राजीव गांधी काॅलेज बस स्टैण्ड, माखनलाल चतुर्वेदी से सम्बद्ध राजीव गांधी कम्प्यूटर काॅलेज से प्राप्त की जा सकती है।

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सतना। केन्द्रीय सरकार के सीमेंटेड सड़क बनाने के आदेश के बाद एकेएस यूनिवर्सिटी के कोर्स बी.टेक सीमेंट टेक्नालाॅजी की तरफ विद्यार्थियों का रुझान तेजी से बढ़ा है और इसके पीछे मूल कारण वर्तमान भारत सरकार द्वारा विकास के पैमाने पर विश्व के क्षितिज पर भारत का नाम अग्रणी पंक्ति में अंकित करवाने की आकांक्षा है। वर्तमान में भारत का सीमेंट उद्योग 270 मिलियन सीमेंट का सालाना उत्पादन करके दूसरे स्थान पर है। भविष्य में भारत के सीमेंट उत्पादन में प्रथम स्थान पर आने की प्रबंल संभावना है क्योंकि औद्योगिकीकरण के साथ भवन, पुल, सड़क और उद्योगों के लिये बड़ी संरचनाओं के निर्माण में सीमेंट की आवश्यकता बड़े पैमाने पर है।

एकेएस में है बी.टेक सीमेंट टेक्नालाॅजी हाइली जाॅब ओरियंटेड कोर्स

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सतना। नेशनल एमपी एज्युकेशनल समिट 2014 में एक्सिलेंट प्राइवेट विश्वविद्यालय, का दर्जा प्राप्त एकेएस यूनिवर्सिटी के एनवायरनमेंट साइंस विभाग द्वारा ‘‘बाल श्रम निषेध दिवस’’ पर ‘‘सामाजिक सुरक्षा का विस्तार, लड़ाकू बाल श्रम-2014’’ थीम पर परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें एनवायरमेंट साइंस के विभागाध्यक्ष डाॅ. महेन्द्र तिवारी ने परिचर्चा के दौरान बताया कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन भले ही जून 1999 से बाल श्रम को खत्म करने के लिये कमर कस चुका हो मगर अब भी करोड़ों बच्चे जीविका चलाने के लिये मजदूरी कर रहे हैं। दुनिया के मुकाबले भारत में सबसे ज्यादा बाल श्रमिक हैं

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सतना। एकेएस यूनिवर्सिटी, सतना ने बदलते दौर की जरूरत एवं विद्यार्थियों की रुचि एवं रूझान को ध्यान में रखते हुए जो नए कोर्सेस लांच किये हैं।उनमें एम.टेक. एप्लायड जिओलाॅजी और बी.एस.डब्ल्यू (बैंचलर आॅफ सोशल वर्क) कोर्स महत्वपूर्ण है।

एम.टेक. एप्लायड जिओलाॅजी कोर्स की अवधि 2 वर्ष है जबकि इंटीग्रेटेड कोर्स 5 वर्ष का है। सांइस में 12वीं पास विद्यार्थी एम.टेक. एप्लायड जिओलाॅजी मंे प्रवेश प्राप्त कर सकते है। गौरतलब है कि भविष्य में माइनिंग एवं खनिज उद्योग विकास के नए प्रतिमान स्थापित करेगे। भारत में खनिज एवं कोयला संसाधन प्रर्याप्त है। लेकिन वैश्विक प्रतिस्पर्धा न होने की वज़ह से भविष्य में एप्लायड जिओलाॅजी की उपयोगिता बढ़नी तय है। ये इंजीनियर्स खनिज कोयला और तैल उद्योग में कार्य कर सकेंगे। भारतीय सीमाओ ंके आलावा अफ्रीका और खाड़ी देशों में एम.टेक. किए इंजीनियर्स की विशेष मां है। कोर्स में लेटरल इन्ट्री बी.एस.सी. भू-विज्ञान भी उपलब्ध है। इस कोर्स की मुख्य विशेषता होगी देश-विदेश के जाने-माने विषय विशेषज्ञों द्वारा अध्यापन एवं स्पेस्फिक प्रैक्टिकल्स।

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सतना।नेशनल एम.पी.टेक्निकल एज्यूकेशन एवं समिट 2014 में एक्सीलेन्ट प्रायवेट वि.वि का दर्जा प्राप्त एकेएस यूनिवर्सिटी सतना अपने विद्याथियों के सामाजिक एवं नैतिक शिक्षा के साथ ही आध्यात्मिक एवं सर्वागीण वकास हेतु कटिबद्व रहते हुए समय समय पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करती है एकेएस यू.के समाजकार्य विभाग द्वारा ‘‘विश्व बालश्रम निरोधी दिवस’’ के अवसर पर ‘‘समाजिक सुरक्षा का विस्तार, लड़ाकू बालश्रम’’- 2014 थीम पर परिचर्चा का आयोजन किया जाएगा। जिसमें बालश्रम के वैश्विक विस्तार, बाल अवैतनिक घरेलू काम, समाजिक सुरक्षा प्रणालियों एवं बालश्रमिकों की दुर्दशा जैसे संवेदनशील मुद्दो पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। इस बात की जानकारी देते हुए समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष ने बताया कि वर्तमान में हो रहे बालश्रमिकों की दशा एवं बाल शोषण पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। परिचर्चा में एकेएस विश्वविद्यालय के सभी संकाय के फैकल्टीज एवं विद्यार्थी भाग लेंगें।

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नेशनल एम.पी. टेक्निकल एक्सीलेंस एज्यूकेशन समिट एंड एवार्ड-2014 में एक्सीलेंस’’प्राप्त विन्ध्य क्षेत्र के शैक्षणिक गौरव एकेएस यूनिवर्सिटी, सतना में पर्यावरण विज्ञान विभाग द्वारा “वल्र्ड ओश्यन डे” पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. महेन्द्र तिवारी, निलाद्री शेखर राय एवं प्राध्यापिका सुमन पटेल ने “वल्र्ड ओश्यन डे” के बारे में विस्तृत ज्ञानवर्धक जानकारियां विद्यार्थियों के साथ साझा की। डाॅ. महेन्द्र तिवारी ने बताया कि विश्व में समुद्र की महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए इस दिवस की शुरुआत वर्ष 1992 में की गई थी। एवं सन् 2000 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे अधिकारिक तौर पर मान्यता दी। तब से यह दिवस प्रतिवर्ष 8 जून को मनाया जाता है। यह दिवस अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी के समक्ष महासागरों की वजह से आने वाली चुनेोतियों के बारें में जागरूकता फैलाने का अवसर प्रदान करता है। जिससे महासागर के महत्व और उससे सम्बन्धित विषयों जैसे खाद्य सुरक्षा,जैव विविधता, परिस्थितिक संतुलन, ग्लोबल वार्मिग आदि की ओर राजनीतिक एवं सामाजिक ध्यान आकर्षित कराना है। संगोष्ठी मे सभी संकाय के विद्यार्थी उपस्थ्ति रहे।

वल्र्ड ओश्यन डे के उद्देश्य पर चर्चा

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