’एकेएस विश्वविद्यालय में ब्राह्मी लिपि का सर्टिफिकेट कोर्स 28 फरवरी से प्रारंभ’
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विश्वविद्यालय के समस्त छात्र-छात्राओं, कर्मचारियों एवं अधिकारियों को एवं आमजनों को भी अवगत कराया जाता है कि विश्वविद्यालय प्रबंधन के सद्सहयोग से विश्वविद्यालय में ’ब्राह्मी लिपि’ के अध्ययन-अध्यापन हेतु शीघ्र ही सर्टिफिकेट कोर्स प्रारंभ किया जा रहा है इसमें प्रवेशार्थियों की उम्र का कोई प्रतिबंध नहीं है। किन्तु उसे कम से कम इण्टरमीडिएट उत्तीर्ण होना चाहिए। इसी तारतम्य में यह भी अवगत कराना है कि बाह्मी लिपि के जानकार लोगों के लिए आंनदमय ज्ञान की उपलब्धि के साथ-साथ पुरातत्व विभाग, म्युजियम तथा अन्य क्षेत्रों में रोजगार के प्रचुर अवसर उपलब्ध है। इतिहास विषय के शिक्षक, शोधार्थी एवं प्राचीन भारतीय इतिहास के विधार्थियों के लिए विशेष लाभप्रद है।
अतः समस्त इच्छुक छात्र-छात्रायें एवं अधिकारीगण जो लोग इस लिपि को सीखना चाहते है, वे दिनांक 27 फरवरी 2018 तक अपने नाम श्री भाग्यवेन्द्र सिंह के पास ए-ब्लाॅक कक्ष क्रमांक ए-1 में 500/- पंजीकरण शुल्क से पंजीकृत करावें। इस पाठ्यक्रम का विधिवत् उद्घाटन 26 फरवरी 2018 को ए-ब्लाॅक के सी-11 में किया जावेगा।
पाठ्यक्रम की कुल अवधि 40 पीरियड की होगी। इसका कुल शुल्क 2000/- रूपए निर्धारित किया गया है। प्रमुख शिक्षिका साध्वी शाश्वत पूर्णा श्री जी (सारिका बी. जैन) होंगी। जिन्होनें ब्राह्मी लिपि के अध्ययन हेतु विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों पर जाकर लगभग 8 वर्षों तक शोध कार्य किया है। उन्होने संस्कृत, जैन धर्म, बौद्ध दर्शन व अंग्रेजी का विशेष ज्ञान अर्जित किया है।
उल्लेखनीय है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति का लेखन ब्राह्मी लिपि में हुआ है अर्थात् भारत की प्राचीन संस्कृति, धर्म, दर्शन एवं गूढ़तम ज्ञान-विज्ञान को यथार्थ में जानने एवं समझने के लिए ब्राह्मी लिपि का ज्ञान होना आवश्यक है। ठोस एवं मौलिक ज्ञान के उद्गम तक का मार्ग भी ब्राह्मी विद्या की जानकारी से ही संभव है। क्योंकि यह मानव चेतना के तार से जुड़ी हुई विद्या/लिपि है। दुःखद यह है कि ब्राह्मी लिपि साइंस एवं तकनीकि युग की अंतहीन अंधी दौड़ में युवा इस कारण भटक रहा है कि उसे ज्ञान के उद्गम का पता ही नहीं है। ब्राह्मी लिपि अब लगभग लुप्त होती जा रही है। किन्तु अभी भी इसको सिखाने वाले/मार्गदर्शन करने वाले गुरू एवं साहित्य उपलब्ध हंै। अतः हम सबको प्रयास करना चाहिए कि इस भाषा को जानने वाले गुरूओं एवं साहित्यों के माध्यम से लिपि को समझं। जिससे वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों के युवाओं के व्यक्तित्व विकास के साथ साथ उनके संर्वागीण विकास का मार्ग प्रकाशमान् हो तथा भटकाव रूक जाए।