संरचनात्मक ढाॅचा एवं भारतीय संस्कृति के उचित समन्वय से होगा देश आत्मनिर्भर-प्रो. एडीएन वाजपेयी नई शिक्षा नीति और आत्मनिर्भर भारत पर सारगर्भित व्याख्यान
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सतना के सभागार में पूर्व कुलपति हिमांचल University शिमला और APS University रीवा ने अपने व्याख्यान में नई शिक्षा नीति और आत्मनिर्भर भारत पर व्याख्यान के माध्यम से विस्तृत क्रमागत प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद फाइव इयर प्लान के माध्यम से अलग अलग दौर में उपजी समस्याओं जैसे भुखमरी, गरीबी, अशिक्षा से कुछ हद तक निजात पाकर भारतवर्ष ने औद्योगीकरण करने और वैश्वीकरण से तालमेल बैठाने के लिए लंबी जददोजहद की। समस्याओं से कुछ हद तक समाधान हुआ। भारत आज विकासशील राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि संस्कृति के साथ सस्टेनेबल विकास के पहिये जुड़ें तो भारत उन्नत होगा,इस दृष्टि से आत्मनिर्भरता जरूरी है, इसी भाव के साथ निरन्तरता अति आवश्यक है। सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि पर लगातार जोर दिया जा रहा है। वोकल फार लोकल के साथ थिंग Global Do Local के परिदृश्य में उन्होंने कहा कि भारतवर्ष के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व शिक्षा में होना जरूरी है। डाॅ.बाजपेयी ने ग्रामीण स्तर पर तकनीकी कौशल,उत्पादकता वृद्वि,के विभिन्न् अवसर उपलब्ध कराने पर जोर दिया। अर्थव्यवस्था के विकेन्द्रीकरण,बडे शहरों में उद्योगों के विकेन्द्रीकरण,बडे शहरों के केन्द्रीयकरण के उलट अब छोटे शहरों में स्किल विकसित कर रोजगार के काॅफी अवसर उपलब्ध कराए जा सकते हैं। एक चेन निर्मित करना अहम है जिसमें गरीब, अमीर, मध्यमवर्ग के लिये विकास के समान अवसर हों। व्यवहारिक और शैक्षणिक पक्ष का स्ट्रक्चर निर्मित किया जाए और उसे लक्ष्य बनाकर पूर्ण किया जाए। आत्मनिर्भर बनने के लिये जरूरी है कि हम उन स्किल्स को आगे बढ़ायें जो हमारी संरचना में निहित हैं। सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भारतवर्ष संस्कृति प्रधान देश है और धर्म-दर्शन, आध्यात्म हमारी जीवनशैली में शामिल हैं इन्हीं से हम आत्मनिर्भरता की राह भी तलाशते हैं। भारतीय समाज संस्कृति के साथ कोई समझौता नहीं करेगा। 5 ट्रिलियन डालर Economy के विविध पहलुओं पर उन्होंने व्याख्यात्मक दृष्टिकोण रखते हुए सस्टेनेबिलिटी पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पहले संसाधनों का पूल निर्मित हो जाए इसी तरह उनका उपयोग करने वाले लोग और उन्हें सही तराशने वाले लोग भी होने चाहिये। भारतवर्ष के विविध क्षेत्रों के पारम्परिक ज्ञान पर उन्होंने गहन दृष्टि डाली और संसाधनों को स्किल से जोड़ने पर जोर दिया। मांग और पूर्ति के बीच समन्वय बनाने के साथ शुद्धता और गुणवत्ता पर उनका Focus रहा। श्री बाजपेयी ने कहा कि स्वदेशी माडल विकास का माडल हो सकता है क्योंकि बचत भारतीय मन की प्रवृत्ति है। शिक्षा नीति में अध्ययन, अध्यापन, स्वायत्तता रूपांतरणकारी है। नई शिक्षा नीति में जीवन मूल्य समाहित होने चाहिये और सभी विषयों पर मौलिक अनुसंधान विकास के लिये जरूरी है। हमारा संविधान तरल हो जिस पर चर्चा भी की जा सके। गांव व शहर, शिक्षा, शराबबंदी, संसाधनों पर बल के साथ उन्होंने स्वावलंबी बनने के लिये हरित क्रांति, स्वेत क्रांति और नीली क्रांति पर भी चर्चा की। कार्यक्रम में वि.वि. के प्रो चांसलर और चेयरमैन अनंत कुमार सोनी, डाॅ. आर. के. जैन पूर्व प्राचार्य वाणिज्य महाविद्यालय, प्रतिकुलपति डाॅ. हर्षवर्धन, डाॅ. आर.एस. त्रिपाठी, प्रो. जी.सी. मिश्रा, इंजी. आर.के. श्रीवास्तव के साथ समस्त संकायों के डीन, डायरेक्टर्स एवं Faculty Members उपस्थित रहे।अतिथि परिचय डाॅ.हर्षवर्धन ने देते हुए अपने अकादमिक अनुभव भी शेयर किए। अतिथियों का आभार प्रतिकुलपति डाॅ आर.एस.त्रिपाठी ने दिया। कार्यक्रम का संचालन फैकल्टी लवली सिंह ने किया। कार्यक्रम क बाद अतिथि सत्कार की परंपरा के अनुसार प्रो. ए.डी.एन. वाजपेयी, पूर्व कुलपति,हिमांचल युनिवर्सिटी, शिमला को स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।