एकेएस वि.वि. में जगद्गुरू शंकराचार्य जी का आध्यात्मिक उद्बोधन जीव का ज्ञान चक्षु एवं दिव्य चक्षु मन है:जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी
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सतना। अनंत श्री विभूषित योगधर्म मठ पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती महाराज 13 दिसम्बर को विंध्य की पावन भूमि पर अवस्थित शिक्षा के केन्द्र एकेएस वि.वि. पधारे। सर्वप्रथम जगगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती, गोवर्धन पीठ पुरी जी का चरणकमल वैदिक मंत्रोच्चार के बीच वि.वि. की भूमि पर पड़ा तत्पश्चात् वि.वि. के कुलाधिपति बी.पी. सोनी और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती केशकली सोनी के साथ अनंत कुमार सोनी, अवनीश कुमार सोनी, अजय कुमार सोनी और अमित कुमार सोनी ने परिजनों के साथ स्वामी जी का पादुकापूजन किया। इस मौके पर स्वामी जी के स्वागत भाषण की कड़ी में विश्वविद्यालय के कुलिाधिपति बी.पी. सोनी ने उन्हें विश्व सरकार की उनकी अवधारणा से परिचित कराते हुए बताया कि हिरोशिमा, नागासाकी और अन्य विनाशकारी विषय, धर्म, दर्शन और आध्यात्म की प्रेरणा से फिर न हों जिसे स्वामी जी ने मनोयोगपूर्वक सुना और इसके पीछे छिपे गुणों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि जीव का ज्ञान चक्षु एवं दिव्य चक्षु मन है, मन को निर्मल रखना चाहिए क्योंकि जीवन जगदीश्वर की प्राप्ति के लिये है। रजोगुण, शतोगुण और तमोगुण ही अच्छाई और बुराई के लिए प्रमुख कारक हैं। स्वामी जी ने आशीर्वचन देते हुए शिक्षा, आध्यात्मक और विज्ञान विषय पर उपस्थितजनों को विभिन्न आख्यानों के माध्यम से धर्मोपदेश दिया, उन्होंने कहा कि साधनहीन प्राणियों को पागलपन से बचाने के लिए गाढ़ी नींद ईश्वर ने रच दी। राजनीति की परिभाषा देते हुए उन्होंने कहा कि सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ व्यक्ति तथा समाज की संरचना होगी तो रामराज्य कायम हो जायेगा। उन्होंने कहा कि जीव की चाह का जो सचमुच का जो विषय है उसी का नाम ईश्वर है। संसार की विषमता दूर करनी है तो हमें ईश्वर का स्मरण करना होगा। हमारी चाह का विषय ही है सच्चिानन्द तत्व की प्राप्ति। सभी पुरुषार्थों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सम्पन्न होना चाहिए। जहाँ विषयजन्य आनन्द है वहीं दुःख होता है, जिस तरह अग्नि का सेवन करने से सर्दी का इलाज हो जाता है उसी तरह योगनिद्रा भौतिकवाद पर भारी पड़ती है। सम्पूर्ण श्रष्टि में ब्रह्मा सर्वाधिक प्रसन्न हैं। भौतिकवादी होते हैं बुद्धू, माने जाते हैं बुद्धिमान, यह भी विसंगति है। समस्याओं का कारण है क्योंकि पूरे विश्व को बाजार का सौदा बना दिया गया है। हर व्यक्ति की जीविका जन्म से आरक्षित हो तो समस्याएं उत्पन्न नहीं होंगी। उन्होने अंत में वि.वि. के वैभव और शैक्षिक संसार की उन्नति का आशीर्वचन प्रदान करते हुए उपस्थित जनों को धन्य किया। अनंत श्री विभूषित योगधर्म मठ पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती महाराज प्रवचन के दिव्य मौके पर समस्त जनों को दर्शन लाभ हुआ समाज, धर्म, संस्कृति, राजनीति, मीडिया के प्रबुद्धजन उपस्थित रहे। कार्यक्रम में महाराज श्री द्वारा लिखित 150 दुर्लभ ग्रंथों का बुक स्टाल भी लगाया गया।