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एकेएस विश्वविद्यालय में ”गोपाष्टमी पर गौ विज्ञान सम्मेलन” का आयोजन

Posted by on in Daily University News in Hindi
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सतना। भारतवर्ष में गोपाष्टमी का खास महत्व है एकेएस विश्वविद्यालय के ”पारम्परिक ज्ञान अनुसंधान एवं उपयोगिता केन्द्र (सीटीकेआरए)” द्वारा गौ विज्ञान सम्मेलन का आयोजन किया गया। हमारे वेदों और शास्त्रों में गाय की बहुत महिमा है। अथर्ववेद में 2000 श्लोक गौ विज्ञान पर आधारित हैं।
ये रहे कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वैद्यराज अब्दुल वारसी (मास्टर ट्रेनर गौअमृत वनस्पति, दुर्ग) ने अपने व्याख्यान में महाभारत, आयुर्वेद, अथर्ववेद और गीता में गौ विज्ञान की महिमा का जो ज्ञान है उसके बारे में विद्यार्थियों को अवगत कराया। उन्होंने छात्रों से आह्वान किया कि न केवल स्वास्थ्य के लिये वरन् कृषि क्षेत्र में भी जैविक खेती के लिये पंचगव्यों का प्रयोग वरदान सिद्ध हो सकता है। अनेकों जड़ी बूटियों जिनको खरपतवार के रूप में नष्ट कर दिया जाता है उनका प्रयोग गौमूत्र के साथ करके टिकाऊ जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिये वरदान सिद्ध हो सकता है। कई किसान मूल रूप से इस पर सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं।विश्वविद्यालय के सीमेन्ट टेक्नाॅलाॅजी के छात्र लक्ष्मीकांत द्विवेदी ने अपने ग्राम मुकुन्दपुर में गौविज्ञान पर आधारित गौशाला का निर्माण किया है जहां इनके पास 200 गौवंश हैं। इन्होंने गोबर से कृषि में प्रयोग आने वाले कीटनाशकों के साथ अगरबत्ती, धूप, साबुन, शैम्पू, घनवटी इत्यादि का भी निर्माण किया है। गौ माता एक चलता फिरता चिकित्सालय है, इससे प्राप्त होने वाला पंचगव्य दूध, घी, दही, गौमूत्र, गौम्य (गौरस) इन सबका स्वास्थ्य के अंदर बहुत महत्व है केवल गौमूत्र से ही मनुष्य में पाये जाने वाले 105 रोग ठीक होते हैं और इन सबको वैज्ञानिक स्तर पर अनुसंधान करके प्रमाणित किया गया है। इन सबमें मुख्य योगदान लखनऊ के विश्वविख्यात अनुसंधान संस्थान एवं एनवीआरआई (राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान), सीआईएमएपी लखनऊ के वैज्ञानिकों को जाता है जिन्होंने गौमूत्र पर 6 पेटेन्ट यूएसए और चायना में लिये हैं। गुजरात के वैज्ञानिको ने अपने अनुसंधान से यह सिद्ध कर दिया है कि गौमूत्र में नैनो पार्टिकल के रूप में सोना भी उपलब्ध है जिसके कारण इसके औषधीय गुण भस्मों की तरह अधिक प्रभावशाली हैं। इन छः पेटेंटों में 2014 में लिया गया चायनीज पेटेंट भी शामिल है जिसमें गौमूत्र में डीएनए रिपेयर करने की क्षमता है, क्योंकि यह डीएनए डैमेज को रोकता है। इसमें बायो इनहेंसमेंट, एन्टीआॅक्सीडेंट, कब्ज नाशक व त्वचा के रोगों को खत्म करने का विशेष गुण है। कार्यक्रम में डाॅ. भूमानंद सरस्वती (निदेशक पारंपरिक ज्ञान एवं अनुसंधान उपयोगिता केन्द्र, एकेएस वि.वि.) ने भी गौविज्ञान के बारे में और इस पर अनुसंधान और पेटेंट के बारे में जागरुक किया इन्होंने कहा कि विद्यार्थी अपने अपने क्षेत्र में गौशालाओं का निर्माण करे व फिर से जैविक खेती को वापस लाकर नौकरी के बजाय सेल्फ एम्प्लायमेंट से जुड़कर अपना भविष्य बनाए। आगे आने वाले समय मे यह एक बहुत बड़ी इण्डस्ट्री के रूप में उभरकर सामने आने वाला है। कार्यक्रम के अंत में डाॅ. एस.एस. तोमर ने धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए विद्यार्थियों को गौविज्ञान को अपना लक्ष्य बनाने, धरती की उत्पादका को टिकाऊ रूप से स्थापित करने, गौशालाओं एवं गौ विज्ञान का महत्व समझने के लिये प्रेरित किया। वि.वि. के चेयरमैन इंजी. अनंत कुमार सोनी ने वैद्य अब्दुल खान वारिस द्वारा लिखित पुस्तिका गौमूत्र चिकित्सा का अनुमोदन किया और विद्यार्थियों से कहा कि इस पुस्तिका को पढ़ें और इसमें दिये हुए नुस्खों का प्रयोग स्वास्थ्य और कृषि में करें। इस अवसर पर चेयरमैन अनंत कुमार सोनी,डायरेक्टर अमित सोनी,एग्रीकल्चर विभागाध्यक्ष डाॅ. नीरज वर्मा के साथ फैकल्टीज एवं बी.एस.सी. एग्रीकल्चर के छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।

 

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Guest Monday, 18 November 2024