नीर, नदी व नारी का सम्मान परमावष्यक - डाॅ. राजेन्द्र सिंह एकेएस वि.वि. में जल संरक्षण एवं संवर्धन पर राष्ट्रीय कार्यषाला सम्पन्न
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एकेएस विश्वविद्यालय में जल प्रबन्धन एवं जल संरक्षण के क्षेत्र में अपने ऐतिहासिक एवं उल्लेखनीय कार्यो से ‘‘रमन मैग्सेसे पुरुस्कार-2001’’ से सम्मानित अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सख्शियत डाॅ. राजेन्द्र सिंह का व्याख्यान आयोजित किया गया। वाटर कन्जर्वेशन एवं वाटर मैनेजमेंट के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए डाॅ. सिंह ने कहा कि तालाब, नदी, झरनों, जंगलों एवं प्रकृति के साथ मानवता पूर्ण सामंजस्य से ही प्रकृति और जीव का सन्तुलन बना रहेगा। धरती हमारी माँ है और माँ अपनी सन्तान की सुख-समृद्धि के लिए जान न्यौछावर करती है पर हमारा भी दायित्व धरती माँ की रक्षा करना है। शोषण, प्रदूषण और अतिक्रमण से मुक्त हो प्रकृति उन्होंने कहा कि भारत में जब तक नीर, नदी और नारी का सम्मान हुआ तब तक भारत विश्व गुरू था। जैसे-जैसे हम प्रकृति के अनियंत्रित दोहन में लिप्त होते गए और जड़ों से कटते गए, हमारी धरती बंजर, वीरान और धूल मिट्टी के बीहड़ों में तब्दील होती गई। डाॅ. राजेन्द्र सिंह ने वाटर हार्वेस्टिंग, वाटर रिचार्जिंग, इन्वायर्नमेंटल इंजीनियरिंग, माॅडर्न नेचर प्राब्लम्स, क्लायमेंट चेन्ज, वाटर एंड फूड सिक्योरिटी, चेलेन्जेस आॅफ इंडियन एज्यूकेशन सिस्टम, माइंड्स आॅफ पीपल्स एडाॅप्टेशन के बारे में भी रोचक एवं जानकारी पूर्ण चर्चा की। पौराणिक आख्यानों एवं सन्दर्भों के माध्यम से वाटर मैन के नाम से प्रख्यात डाॅ. राजेन्द्र सिंह ने कार्यशाला में स्टाॅकहोम (स्वीडन) में वर्ष 2015 में उन्हें मिले ‘‘वाटर नोबल पुरुस्कार -2015’’ के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि लगातार प्रयास से ही जल समस्या का निवारण संभव है। पी.पी.टी. प्रेजेन्टेशन के माध्यम से उन्होंने बताया कि राजस्थान के अलवर, भीकमपुर सहित 11 जिलों की सात सूखी नदियों की रिचार्जिंग, सूखे क्षेत्रों में बिना सरकारी मदद के 11 हजार 600 डैम बनाये गए। 25 हजार कुओं कि रिचार्जिंग की गई जो वर्षो से सूखे पड़े थे, अब पूरा क्षेत्र कृषि और हरियाली से आच्छादित है। सतना विशेष का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पानी की भीषण समस्या, गरमी का प्रकोप एवं जल स्त्रोतों पर अतिक्रमण तो है पर इन्हें प्रकृति के समीचीन जाकर दूर किया जा सकता है। अवर्षा एवं सूखे की भीषण स्थितियां, प्रकृति के अनियंत्रित दोहन एवं मानवीय नकारात्मक नजरिये की वजह से बनी है। एकेएस विश्वविद्यालय के वाटर कन्जर्वेशन पर आयोजित सेमिनार की उन्होंने प्रशंसा करते हुए कहा कि इस तरह के आयोजन से लोगों में जागरूकता आती है। सरकारी स्तर पर उम्मीद कम भी हो तो स्वसहायता के माध्यम से समूह बनाकर वाटर हार्वेस्टिंग की दिशा में प्रयास किया जा सकता है। डाॅ. हर्षवर्धन ने डाॅ. राजेन्द्र सिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर सतना कलेक्टर नरेश पाल ने कहा कि श्री राजेन्द्र सिंह के अनुभव का लाभ सतना जिले की पानी की समस्या हल करने में लिया जाएगा। श्री सिंह को अगस्त माह मंे एक वृहद कार्यक्रम आयोजित कर ग्रामीण विकास की समस्याओं, जल स्तर के सुधार हेतु निमंत्रित किया जाएगा। श्री पाल ने आगे कहा कि सतना जिले के तालाबों व वाटर बाॅडीज को चिन्हित करने का अधिकांश कार्य ‘‘ग्राम उदय से भारत उदय’’ अभियान के अन्तर्गत पूर्ण कर लिया गया है तथा तालाबों का पुर्नजीवन कार्यक्रम जन सहयोग से किया जा रहा है।
ये रहे उपस्थित
सेमीनार को जिला पंचायत सी.ई.ओ. संदीप शर्मा ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम में महापौर ममता पाण्डेय, जिला पंचायत उपाध्यक्ष डाॅ. रश्मि सिंह, एस.डी.ओ.पी. पी.एल अवस्थी, पेंशनर्स समाज के अध्यक्ष हरि प्रकाश गोस्वामी, विश्वविद्यालय के चेयरमैन अंनत कुमार सोनी प्रतिकुलपति डाॅ. हर्षवर्धन, डाॅ. आर.एस.त्रिपाठी, प्रो. आर.एन. त्रिपाठी, बाबूलाल दाहिया, इंजी. आर.के. श्रीवास्तव के साथ जिला पंचायत सतना के सदस्य एवं विश्वविद्यालय के विभिन्न संकाय के डीन, डायरेक्टर्स एवं विभागाध्यक्षों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।