शरीर, प्राण, मन, बुद्धि और हृदय की समग्रता है जीवन प्रबंधन का मंत्र- डाॅ0 स्वामी शाश्वतानंद गिरी जी महाराज एकेएस विश्वविद्यालय में ‘‘गीता जीवन प्रबंधन का मंत्र ‘‘विषय पर व्याख्यान
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सतना। एकेएस वि.वि. सतना के सभागार में डाॅ0 स्वामी शाश्वतानंद गिरी जी महाराज वेदांत की प्राचीनतम परंपरा के तपोनिधि अखाड़ा श्री निरंजिनी के सम्मानित महामण्डलेश्वर ने ‘‘गीता जीवन प्रबंधन का मंत्र‘‘ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि श्रीमद् भागवत गीता भगवान श्री कृष्ण के हृदय व श्री मुख से निकली हुई पंक्तियां हैं जो युद्ध भूमि में अर्जुन के शस्त्र त्याग के बाद भगवान ने अर्जुन को समझाते हुए कही गीता जीवन का सार है इसमें अंधविश्वास नहीं है, ईश्वर के प्रति आस्था और धर्म के अनुसार विश्वास ,गीता में कहा गया है योगःकर्मषुु कौशलम् इसका अर्थ है कोई भी कार्य करो कुशलता से करो यही योग है श्रीकृष्ण प्रेम के परिमार्जन का नाम है जहां सारे रसों का समागम है गीता में विकार के लिए कोई जगह नहीं है। विश्वास जगाते हुए उन्होने कहा कि जो लोग अपने आपको कमतर आंक कर अपने जीवन के कार्यों को करते हैं उनका नैसर्गिक विकास नहीं होता कोई कार्य करो उसमें सतर्कता रखो जिससे जीवन में संगीत पैदा हो और खुशी मिले मन बंधना नहीं चाहिए सोच खुली रखेा बडी रखेा संकुचित नहीं। कर्मन्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन का कई आख्यानों के माध्यम से उन्होंने समझाया,उन्होंने कहा कि कर्म आपके अधिकार में है कर्म का क्या फल आयेगा इस पर आपका कोई अधिकार नहीं है अधिकार दो तरह के होते हैं स्वत्व परक अधिकार और योग्यता परक अधिकार,योग्यता परक अधिकार कर्म का फल है,उन्हांेने कहा कि योग व ध्यान वह क्रिया हैं जिसमें हम वह कर्म करते हैं जो सुषुक्त अवस्था में करते हैं वही जागृत अवस्था में करें वही योग है जीवन को शांति की तरफ ले चलें, उन्होंने सीख देते हुए कहा कि गीता कहती है मन को बीमार न होने दो,शरीर को स्वस्थ रखो,प्राण वायु प्रवाहित रहे,हृदय प्रेम से भरा रहे और बुद्धि चलायमान हो यही भगवत गीता का मूल मंत्र है इस मौके पर विश्वविद्यालय के कुलपति परितोष के बनिक ने डाॅ0 स्वामी शाश्वतानंद महाराज का धन्यवाद ज्ञापित किया। प्रश्नों की कड़ी में छात्र-छात्राओं ने स्वामी जी से जीवन प्रबंधन के कई प्रश्न पूंछे जिनका उन्होंने समाधान किया अंत में उन्होंने विश्वविद्यालय की प्रशंसा करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय की तुरूणाई नवीन भारत के उदीयमान सपनों को पूर्ण करेगी जो नए भारत का निर्माण करेगी गीता की तेजस्विता पर उन्होंने कहा कि गीता संपूर्ण विश्व का गं्रथ है जिसका वैश्विक महत्व है ‘‘भारत का सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग‘‘ उन्नति का बाधक है ईमानदारी उन्नति का मूल है, कृष्ण कहते हैं बेवकूफ मत बनो, समय सर्वाधिक कीमती है,समय योगी बनो, रोज जो आगे जाएगा वही आगे बढ पाएगा उन्होंने जीवन की परिभाषा देते हुए कहा कि मानवधर्म का पालन करो। इस मौके पर वि.वि. के चेयरमैन अनंत कुमार सोनी, प्रतिकुलपति डाॅ. हर्षवर्धन श्रीवास्तव, प्रतिकुलपति डाॅ. आर. एस. त्रिपाठी, इंजी. आर. के श्रीवास्तव, इंजी.ए.के.मित्तल,शंखधर मिश्रा,मनीष अग्रवाल,अतुल सोनी, आमिर हसीब सिद्दीकी, के साथ डिप्लोमा माइन एण्ड मांइन सर्वेइंग और बीए कम्प्यूटर के तीन सौ से अधिक छात्र-छात्राअंों ने स्वामी जी के श्रीमुख से उच्चरित जीवन प्रबंधन का मंत्र पर व्याख्यान ध्यान पूर्वक सुना और अपने जीवन में उतारने की सीख भी ली।