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सतना। एकेएस विश्वविद्यालय सतना तथा नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग एण्ड रिसर्च भोपाल के संयुक्त तत्वाधान में आटोमोबाइल विषय पर डिस्टेंस लर्निंग कोर्स का शुभारंभ किया गया जिसमें आर.के. गोरडा, एफटीआई बैंगलोर ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में म.प्र. के चुनिंदा चार संस्थानों को चयनित किया गया था जिसमें एकेएस यूनिवर्सिटी सतना शामिल है। इस कार्यक्रम में कटनी, रीवा, सिंगरौली, अनूपपुर, शहडोल, सागर, छतरपुर, पन्ना, विजयराघवगढ़, सतना, पुरई, ओरछा, मैहर, उचेहरा, न्यू रामनगर, मऊगंज, मनगवां, बेनीवारी, जैतहरी, कोतमा, बीना, दमोह, नोहटा, पटेहरा, टीकमगढ़, उमरिया, बहोरीबंद इत्यादि क्षेत्रों के विभिन्न आई.टी.आई. संस्थानों के शिक्षकों को प्रशिक्षित होने का अवसर मिला। यह कार्यक्रम 18 जून से 20 जून तक सुनिश्चित है। कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर एकेएस विश्वविद्यालय के चेयरमैन अनंत कुमार सोनी ने प्रतिभागियों को शुभकामनाएं दीं। कार्यक्रम के स्थानीय संयोजक कुमार आशीष ने विश्वविद्यालय प्रबंधन, तकनीकी विभाग तथा नाइटर भोपाल को इस कार्यक्रम में सहयोग के लिये धन्यवाद ज्ञापित किया।वि.वि. प्रबंधन ने बताया कि यह पूरा कार्यक्रम मिनिस्ट्री आॅफ लेबर एण्ड एप्लायमेंट नई दिल्ली तथा डायरेक्टर आॅफ स्किल डेवलपमेंट म.प्र. के संयुक्त प्रायोजन से प्रस्तुत किया जा रहा है।

एकेएस यूनिवर्सिटी में ‘‘विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा दिवस‘‘ पर परिचर्चा का आयोजन

सतना। नेशनल एम.पी. एज्युकेशनल समिट 2014 में एक्सलेंट प्राइवेट वि.वि. का दर्जा प्राप्त एकेएस यूनिवर्सिटी के एनवायर्नमेंट साइंस विभाग द्वारा ‘‘विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा दिवस’’ के अवसर पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें एनवायर्नमेंट साइंस के विभागाध्यक्ष डाॅ. महेन्द्र कुमार तिवारी ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सन् 1994 में 17 जून को विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा दिवस, मरुस्थलीकरण से निपटने और सूखे के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये घोषित किया गया। तब से लेकर प्रतिवर्ष विश्व के सभी देश जो इस समस्या से ग्रसित हैं इसके समाधान के लिये यह दिवस मनाते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन पर चर्चा

शुष्क भूमि परिस्थितिकीय प्रणालियों का अत्यधिक दोहन, गरीबी, राजनैतिक अस्थिरता, वनों की कटाई, अनुपयुक्त कृषि प्रणाली और गरीब सिंचाई पद्धतियों इत्यादि मरुस्थलीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। लगातार बढ़ती हुई जनसंख्या एवं इसकी आवश्यकताओ की पूर्ति के लिये विभिन्न प्रकार की औद्योगिक इकाइयों की स्थापना एवं इनसे निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसें तथा लगातार जंगलों के कटने से हमारे वातावरण का तापमान तीव्र गति से बढ़ रहा है जिसके कारण जलवायु में होने वाले परिवर्तनों का हम सामना कर रहे हैं। जिससे सूखा और बाढ़, किसानों को कम भोजन का उत्पादन, पशुधन के लिये चारागाह, जैव विविधता में कमी एवं परिस्थितिकीय तंत्र, में असंतुलन निरंतर बढ़ रहा है।

मरुस्थलीकरण एवं सूखे को प्रभावी रूप से कम करने के लिये स्थानीय प्रबंधन और मैक्रो नीति, एकीकृत भूमि, बेहतर जल प्रबंधन की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इस मौके पर समस्त विभागों की फैक्ल्टीज एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।