एकेएस यूनिवर्सिटी, सतना के सभागार में एक कार्यक्रम रखकर ‘‘वल्र्ड थैलेसीमिया डे‘‘ मनाया गया गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘‘वल्र्ड थैलेसीमिया डे‘‘ 8 मई को नियत किया है। वर्तमान के बोन मैरो ट्रान्सप्लान्टेशन की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए बताया गया कि थैलेसीमिया नामक बीमारी से बचाव संभव है। विश्व में पाए जाने वाले मरीजों पर चर्चा करते हुए फार्मेसी विभागाध्यक्ष नेे बताया कि यह अनुवांशिक ब्लड डिस आर्डर की बीमारी हैै। ब्लड सैल्स में हीमोग्लोबिन की कम मात्रा पाई जाती है। जिससे थैलेसीमिया का प्रभाव बढ़ जाता है। थैलेेेसीमिया के मरीजों को दो तरह की समस्याऐं आती है। पहली रेड ब्लड सेल्स कम मात्रा में प्रोड्यूस होता है दूसरे अधिकतर सेल्स डैमेज हो जाती है। हीमोग्लोबिन में दो तरह की प्रोटीन पाई जाती है। अल्फा और बीटा इन दोनों प्रोटीनों के प्रकार पर भी चर्चा की गई। इस मौके पर एकेएस यूनिवर्सिटी, सतना के विशाल सभागार में विभिन्न संकायों के विद्यार्थियों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।